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स्वतंत्रता मिले 75 साल हो गए, आजादी का अमृत महोत्सव चल रहा, लेकिन क्या हम आजाद है?

 स्वतंत्रता मिले 75 साल हो गए, आजादी का अमृत महोत्सव चल रहा, लेकिन क्या हम आजाद है?



सभी देशवासी 15 अगस्त की खुशियां मनाते हैं और मनानी भी चाहिए क्योंकि हमें 700 साल मुगलों ने तथा 200 साल अंग्रेजों ने गुलामी की जंजीरों में जकड़ा था, उससे हमें स्वतंत्रता मिली तो खुशी होनी चाहिए, लेकिन मुगलों से आज़ाद होने के लिए लाखों तथा अंग्रेजों के अत्याचारी शासन से मुक्त होने के लिए 7,32,000 शहीदों ने बलिदान दिया है।*


*आजादी के 75 साल और इसके लोगों, संस्कृति और उपलब्धियों के गौरवशाली इतिहास को मनाने के लिए भारत सरकार की एक पहल है "आजादी का अमृत महोत्सव" मानने की।*


*आज़ादी अमृत महोत्सव मनाना अच्छी बात है, सभी देशवासी खुशी से अपने अपने घर तिरंगा फहराये और वो तिरंगा बाद में किसी पैर के नीचे न आये उसका ध्यान भी रखना आज़ादी की खुशी मनाये लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों की बाह्य गुलामी तो दूर हुई, लेकिन अंग्रेजी भाषा की, उनके बनाये कानून और उनके विचारों की गुलामी तो हमारे दिमाग में घुसी हुई है। उनकी बनाई हुई शिक्षा प्रणाली आज भी चल रही है।*


*स्वतंत्रता दिवस की खुशियाँ मनानी चाहिए,पर खुशी मनाने के साथ खुशी शाश्वत रहे, ऐसी नजर रखनी चाहिए। इसके लिए देश को तोड़ने वाले षड्यंत्रों से बचें, संयमी और साहसी बनें, बुद्धिमान बनें। अपनी संस्कृति व उसके रक्षक संतों के प्रति श्रद्धा तोड़ने वालों की बातें मानकर अपने देश की जड़े खोदने का दुर्भाग्य अपने हाथ में न आये। बड़ी कुर्बानी देकर आजादी मिली है। फिर यह आजादी विदेशी ताकतों के हाथ में न चली जाय, उसका ध्यान रखना ही 15 अगस्त याद दिलाता है।*


*आज कॉन्वेंट स्कूल, मीडिया, टीवी, इंटरनेट आदि के माध्यम से उनकी संस्कृति हमें परोसकर हमारे देशवासियों को कमजोर कर रहे हैं। दूसरा, अंग्रेजों के बनाये कानून के द्वारा आज भी निर्दोष को न्याय और अपराधियों को सजा नहीं होने के कारण अपने भारतीय संस्कृति के अनुसार भारत की व्यवस्था करनी चाहिए जिसके कारण देशवासियों को न्याय मिल पाए।*


*विदेशी लोग अपनी पाश्चात्य संस्कृति से परेशान होकर हमारी संस्कृति व भाषा अपना रहे हैं।*


*हमें भी अपनी वैदिक संस्कृति, अपने देश की जलवायु और रीति-रिवाजों के अनुसार स्वास्थ्य लाभ, सामाजिक जीवन और आत्मिक उन्नति करानेवाली भारत की महान संस्कृति का आदर करना चाहिये, लाभ लेना चाहिए। अंग्रेजी कल्चर का दिखावटी जीवन भीतर से खोखला कर देता है। संयमी, सदाचारी और साहसी भारतीय संस्कृति के सपूतों को अपनी मिली हुई आजादी को सावधानी से सँभाले रखना चाहिये। उनकी संस्कृति अपनाकर हमें परतंत्र नहीं बनना चाहिए, बल्कि अपनी महान भारतीय वैदिक संकृति अपनाकर स्वतंत्र बनना चाहिए।*


*आइये आपको कुछ नमूने बताते हैं जो विदेशियों की विवशता और भारतवासियों की महामूर्खता को बयां कर रहे हैं-*


*1. आठ महीने ठण्ड पड़ने के कारण कोट पैंट पहनना विदेशियों की विवशता और शादी वाले दिन भरी गर्मी में कोट-पैंट डालकर बारात लेकर जाना हमारी मूर्खता।*


*2. ठण्ड में नाक बहते रहने के कारण टाई लगाना विदेशियों की विवशता और दूसरों को प्रभावित करने के लिए जून महीने में टाई कसकर घर से निकलना हमारी मूर्खता।*

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