भारत की रक्षा पंक्तियों को समय और जरूरत के अनुरूप मजबूत बनाना जरूरी है। इसी कड़ी में कम से कम 9,400 जवानों वाली सात नई बटालियनों को भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) में जोड़ा जाएगा।
अरुणाचल में एक नया सेक्टर मुख्यालय भी बनाया जाएगा। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि चीन से लगती भारतीय सीमा पर दिनों-दिन जरूरत बढ़ती जा रही है। सीमा पर रक्षा पंक्ति को मजबूत करने के लिए 4.1 किलोमीटर लंबी सुरंग को भी मंजूरी दी गई, जो लद्दाख तक हर मौसम में पहुंच की गारंटी देगी। सीमा पर बसे लोगों को भी निवास के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। यह गौर करने की बात है कि चीन अपनी ओर सीमा में बसावट पर भी ध्यान दे रहा है। भारत को भी अपना कोई इलाका खाली नहीं छोड़ना चाहिए और खाली इलाकों में रक्षा से रौनक पैदा करने के लिए जवानों की जरूरत बढ़ गई है। सीमावर्ती चौकियों पर अभी भी आईटीबीपी के जवान तैनात हैं और जवानों की कमी की चर्चा बीच-बीच में सामने आती रही है। नई बटालियनों के बनने से चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर शांति और स्थिरता भी पैदा होगी। आशंका और असुरक्षा में कमी आएगी।
हालांकि, चीन के साथ तुलना करें, तो यह संख्या अभी भी कम है। आने वाले दिनों में सरकार को और ज्यादा नियुक्तियां या भर्तियां करनी चाहिए। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 4,800 करोड़ रुपये के व्यय के साथ केंद्र प्रायोजित वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम को भी मंजूरी दी है। इससे चीन की सीमा से लगते चार राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेश में बुनियादी ढांचे के विकास और आजीविका के अवसरों को बढ़ावा दिया जाएगा। खबरें स्पष्ट हैं कि सीमा पर स्थित गांवों से पलायन हो रहा है, क्योंकि चीन का खतरा वास्तविक है, अत इन गांवों में लोगों के रोजगार की व्यवस्था हर लिहाज से सही है और यह काम सरकार को युद्ध स्तर पर करना चाहिए। सीमा पर बसे गांवों में लोग अगर खुशहाल होंगे, तो इससे भारतीय रक्षा पंक्ति को मजबूती मिलेगी। विशेष रूप से साल 2020 में गलवान में झड़पों के बाद से आईटीबीपी का विस्तार जरूरी हो गया था। आईटीबीपी के लिए और अधिक बटालियनों को शामिल करने का फैसला करीब 10 वर्ष के समय में पहली बार हुआ है। इस सुरक्षा बल में आगामी तीन वर्ष में 63 बटालियनें हो जाएंगी। सेना की मजबूती पर ध्यान प्रशंसनीय है। यह एक ऐसा मोर्चा है, जहां प्रचार कम और काम अधिक करना ही ज्यादा अच्छा रहता है।
भारत अपने को हर दिशा से चाक-चौबंद बना रहा है, तो यह बढ़ते खतरों को देखते हुए आवश्यक है। पिछले दिनों में नेपाल और चीन के बीच रिश्ते का जिस तरह से विस्तार तेज होता दिख रहा है, भारत के लिए सतर्कता अपरिहार्य हो गई है। नेपाल से हमारा रोजी-बेटी का संबंध है और यह संबंध टूट नहीं सकता, लेकिन नेपाल में धीरे-धीरे भारत विरोधियों की मौजूदगी बढ़ रही है, जो किसी भी प्रकार से युद्ध की स्थिति में भारत के प्रतिकूल जा सकती है, इसलिए नेपाल से लगती सीमा पर भी चौकसी जरूरी है। किसी भी भले आदमी को रोकना नहीं है, पर किसी भी गलत तत्व को देश में आने से रोकना सही रणनीति है। खुली और विश्वास भरी सीमा का फायदा किसी संदिग्ध मानसिकता वाले देश को नहीं मिलना चाहिए। सीमा पर चौकसी बढ़े, लेकिन हमारी चिंता में नेपाल की सुरक्षा भी शामिल रहे।
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