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महिला क्रिकेट में करोड़ों की कमाई से जाग उठे अरमान

 उस दिन कमाल हो गया, खेल बदल गया, कायाकल्प हो गया, ऐतिहासिक मानदेय इतना मिला, मानो खजाना हाथ लग गया। महिला प्रीमियर लीग (डब्ल्यूपीएल) की नीलामी 13 फरवरी को आयोजित हुई और इस दिन बहुत कुछ ऐसा हुआ, जो पहले न हुआ था। सबसे पहले तो आंकड़े सबका ध्यान खींच रहे हैं। दिग्गज क्रिकेटर स्मृति मंधाना 3.4 करोड़ रुपये में अनुबंधित हुई हैं, महिला क्रिकेट में ऐसा कभी नहीं हुआ था। टीम खेल में सर्वाधिक वेतन आमतौर पर फुटबॉल में मिलता है, जहां सबसे अधिक कमाई करने वाली ऑस्ट्रेलियाई समांथा केर इंग्लैंड में महिला सुपर लीग (डब्ल्यूएसएल) में चेल्सी महिला के लिए फुटबॉल खेलती हैं। उनकी प्रति वर्ष कमाई 4,10,000 डॉलर से 5,06,000 डॉलर के बीच रहती है, मतलब भारतीय मुद्रा में अगर देखें, तो समांथा चार करोड़ रुपये की सालाना कमाई महिला सुपर लीग से करती हैं।

खैर, भारत में डब्ल्यूपीएल ने वादा किया है कि टॉप टेन कमाई वाली खिलाड़ियों में से नौ को अधिक भुगतान किया जाएगा। यह भुगतान दुनिया में टॉप महिला फुटबॉलरों की कमाई से ज्यादा पीछे नहीं होगा। दैनिक कमाई में भी भारतीय महिला क्रिकेटर पीछे नहीं रहेंगी। किसी भी देश में क्रिकेटरों को इससे अधिक भुगतान नहीं होता है। हालांकि, भारत में महिला क्रिकेट को उसका यथोचित मान या मानदेय देने के लिए बहुत लंबा इंतजार कराया गया है। नतीजे पहले ही दिखाई दे रहे हैं। महिला अंपायर, स्कोरर, कोच, प्रशिक्षकों और फिजियो की संख्या व सक्रियता में बहुत तेजी आ गई है। पिछले सप्ताह मुंबई में महिला टी-20 टूर्नामेंट की संख्या में वृद्धि की सूचना आई थी। अगले महीने महाराष्ट्र क्रिकेट एसोसिएशन की महिला क्लब लीग का पहला सीजन खेला जाएगा, जो देश में सबसे बड़ी महिला क्लब क्रिकेट प्रतियोगिता है, जिसमें 56 टीमें व 800 से अधिक खिलाड़ी शामिल होंगी। इससे संकेत मिलता है कि महिला खिलाड़ियों की संख्या कम होने का जो बहाना पहले बनाया जाता था, वह बकवास था। शायद इसलिए भी महिलाओं की प्रीमियर लीग में देरी हुई है।

भारत की सबसे अधिक कमाई वाली महिला खिलाड़ी व्यक्तिगत या एकल खेलती हैं। बैडमिंटन स्टार पीवी सिंधु 70 लाख डॉलर मतलब करीब 56 करोड़ रुपये की कमाई करती हैं और दुनिया की सबसे अमीर महिला एथलीटों की सूची में 12वें नंबर पर हैं। कमाई के मामले में टेनिस खिलाड़ियों का दबदबा है। फिर भी, भारत के लिए हॉकी या फुटबॉल खेलने वाला कोई भी व्यक्ति डब्ल्यूपीएल के आंकड़ों को अनदेखा नहीं कर सकता। विदेश में खेलने वाली भारतीय महिला फुटबॉलरों के वेतन मामूली होते हैं। हॉकी में मैच फीस दुर्भाग्य से पुरुषों और महिलाओं, दोनों के लिए एक छोड़ देने वाला विषय है। यह स्थिति ओडिशा सरकार की 100 करोड़ रुपये की उदारता और 10 वर्ष तक प्रायोजक बनने के बावजूद है।

अन्य भारतीय खेलों में डब्ल्यूपीएल नीलामी का प्रभाव मामूली दिखाई पड़ सकता है। ओलंपिक में शामिल खेलों का संचालन करने वाले और अपनी कुरसियों को मजबूत हाथों से पकड़े बैठे लोग यह शिकायत कर सकते हैं कि क्रिकेट की झोली में ही नकदी चली जा रही है। जमीन पर अब कोई भी क्रिकेट कोचिंग अकादमी लड़कियों का प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करने से नहीं बच सकती। डब्ल्यूपीएल से निकले आंकड़े छोटे शहरों में 10-12 आयु वर्ग की युवा लड़कियों के माता-पिता और प्रशिक्षकों के बीच चर्चा बढ़ाएंगे और महत्वाकांक्षा, अवसर और विकास के संबंध में उनके मन में सवाल उठेंगे। महिला खिलाड़ियों के बीच क्रिकेट जल्द ही शीर्ष स्थान हासिल कर सकता है।

वैसे इस बात का कोई ऑडिट नहीं है कि भारत में सर्वश्रेष्ठ महिला खिलाड़ी किस खेल की ओर आकर्षित होती हैं, क्योंकि हमारे स्कूल-विश्वविद्यालयों में खेल ढांचे टूट चुके हैं। लेकिन क्या अन्य खेल हमारी युवतियों और उनके परिवारों के सामने ऐसी कोई पेशकश करते हैं, जो अब क्रिकेट कर रहा है? संभव है, बीसीसीआई के संचालकों को यह समझ में नहीं आ रहा होगा कि इस नीलामी ने क्या तेजी पैदा की है। इसने भारत में महिलाओं में खेल ऊर्जा को जगाकर सक्रिय कर दिया है।



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