मीडिया के क्षेत्र में भारत उदय
जब हम एक भारत-श्रेष्ठ भारत की बात करते हैं। ग्राम उदय, शिक्षा, चिकित्सा, आयुर्वेद, तकनीकी, कृषि जैसे क्षेत्र के योगदान की बात होती है। इन सभी में सबसे अधिक महत्ता मीडिया क्षेत्र की है, जिसे लोकतन्त्र का चौथा स्तम्भ भी कहा जाता है। मीडिया की भूमिका के बिना भारत उदय असम्भव दिखाई पड़ता है.।
जब-जब भी राष्ट्र पर संकट आया, मीडिया ने अपने कर्तव्य का निर्वाह किया है। चाहे स्वतन्त्रता समर में योगदान की बात हो, आपातकाल का समय हो या कोरोना काल। हर समय जान हथेली पर लेकर निडर, निर्भीक मीडियाकर्मी राष्ट्र की सेवा में जुटे रहे।
आज जब सभी मीडिया के पतन की बात करते हैं, मैं कहूँगी मीडिया में पुनर्जागरण हो रहा है। जहां समाचार रिपोर्टिंग एक बड़े बदलाव से गुजर रही है और विकासात्मक एवं जन-केन्द्रित समाचार अधिक आ रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में मीडिया की सुर्खियाँ विकासात्मक समाचार जैसे- यूपी में फिल्मसिटी, नए हवाईअड्डे, मेट्रो सिटी, हाईस्पीड ट्रेन और अंतर्देशीय जलमार्ग बन रहे हैं।
अभी जब कोरोना वायरस के कारण संकट का समय है, मीडिया के सभी प्रकार के प्लेटफॉर्म ने सराहनीय काम किया है। अधिक से अधिक जानकारी देकर घर में बन्द लोगों को राहत पहुंचाई है। जितने बार प्रधानमंत्री ने जो-जो भी निर्देश दिए, मीडिया के माध्यम से लोगों तक पहुंचे। जिसका व्यापर असर भी देखने को मिला।
लॉकडाउन के समय लोग परेशान न हों, उन्हें कैसे और कहां-कहां से सहायता मिल सकती है? मीडिया ने सभी तक न मात्र हेल्पलाइन नम्बर पहुँचाए अपितु स्वयं भी कोरोना वॉरियर की तरह काम करते दिखाई दिए।
आज मीडिया में ‘’अच्छी खबरें’’, ‘’खुश खबर’’ समेत कई टैग लाइन के साथ ऐसे समाचारों को प्राथमिकता दी जाती है, जो जनता का उत्साहवर्धन करती है उन्हें नई दिशा देती हैं।
कुछ वर्ष पहले की मीडिया की तुलना करें तो जहाँ पहले चटपटे-मसालेदार समाचार और घटना को तोड़-मरोड़कर पेश करना, दंगे भड़काने वाले समाचार प्रकाशित करना, घटनाओं एवं कथनों को द्विअर्थी रूप प्रदान करना, भय या लालच में सत्तारूढ़ दल की चापलूसी करना, अनावश्यक रूप से किसी की प्रशंसा, महिमामंडन करना और किसी दूसरे की आलोचना करना शामिल था। कृषि, विज्ञान, ग्रामीण क्षेत्र से जुड़े समाचारों को स्थान नहीं मिल पाता था। अब किस स्थान पर किस किस्म की फसल हो रही है, इस पर चर्चा होती है।
परन्तु आज भी कुछ हद तक बाजारीकरण हावी है। कुछ टीवी डिबेट सुनकर ऐसा महसूस होता है कि विचार, मन्थन का अकाल पड़ गया है। ऐसे कार्यक्रम सम्वाद कम, वॉकयुद्ध अधिक लगते हैं..।
इनसे शायद ही कोई अर्थ या हल निकलता है। डिबेट में जो एंकर जितनी लड़ाई, चीख-चिल्लाई, गाली-गलौच करवा ले उतना अच्छा मान लिया जाता है।
बहस का मतलब मन्थन या प्रकाश देना नहीं, लड़ाना भर रह गया है। समाचार नहीं, मसाला परोसना रह गया है।
ऐसे में मीडिया क्षेत्र से जुड़े लोगों को मन्थन की आवश्यकता है। दिशाहीन होकर पत्रकारिता मात्र पैसे कमाने का माध्यम भर न रह जाए, अपितु अपना प्रमुख काम समाज को दिशा और सरकार को आइना दिखाना बनाए रखे। समाज का भरोसा मीडिया पर बना रहे, इस दिशा में काम करने की आवश्यकता है।
अर्थात मीडिया से जुड़े लोगों को ''स्वनियन्त्रण'' की आवश्यकता है। अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता क्या दूसरों का हरण करने का अधिकार है? इस पर विचार करने की आवश्यकता है। मीडिया में बैठे लोगों को मन्थन करना चाहिए, क्या हम राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह सही ढंग से कर रहे हैं? क्या जो हम दिखा या बता रहे हैं, वह जनता के लिए आवश्यक है? समाज की उन्नति में सहायक है?
कर्तव्यमेव कर्तव्यं प्राणैः कण्ठगतैरपि |
अकर्तव्यं न कर्तव्यं प्राणैः कण्ठगतैरपि || - महासुभषित संग्रह(८८५७)
अर्थात जो भी हमारा कर्तव्य है उस का पालन हमें मृत्यु संकट आ जाने पर भी करना चाहिए और जो निषिद्ध कार्य हैं उन्हें मृत्यु संकट होने पर भी नहीं करना चाहिये।
मीडिया महाबली हनुमान की भांति है, जो अपनी शक्तियाँ भूल गई है और अब मार्ग से भटक गई है। मीडिया को अपनी शक्तियों के साथ अपने कर्तव्यों को भी याद रखने की आवश्यकता है, ताकि वह भारत उदय में अपूर्णनीय योगदान दे सके और भारत फिर से विश्वगुरू कहलाए।
पत्रकार के लिए सबसे बड़ी चीज है - कलम
जो ना रुकनी चाहिए,
न झुकनी चाहिए,
न अटकनी चाहिए
और न
ही भटकनी चाहिए।
-माखनलाल चतुर्वेदी
0 Comments