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सही मूल्यांकन होना अभी बाकी है

 प्रेमचंद हिंदी के पहले ऐसे कहानीकार थे, जिन्होंने कहानी की रचना के साथ-साथ कहानी के आधुनिक शास्त्र को भी स्वरूप प्रदान किया। अपने लेखन से विश्व साहित्य में अपनी पहुंच बनाने वाले प्रेमचंद और उनके साहित्य का सही और पूरा मूल्यांकन होना अभी बाकी है। प्रेमचंद के साहित्य के अनछुए पहलुओं पर नए ढंग से दृष्टि डालती पुस्तक ‘प्रेमचंद नयी दृष्टि नये निष्कर्ष’ से एक अंश

इतिहास इसका साक्षी है कि जो व्यक्ति अपने युग में महान होता है, वह ही आने वाले युगों में अपनी महानता की पहचान बनाए रखता है। ऐसे उदाहरण विरल ही होंगे, जो अपने युग में अपने कृतित्व से महान न माने गए हों और शताब्दियों के बाद उनकी महानता को खोजा और पहचाना गया हो, लेकिन ऐसे उदाहरण पर्याप्त मिलेंगे, जिनमें व्यक्ति की जीवित अवस्था में, उसके कृतित्व के गौरव को खंडित-मंडित किया गया हो, यहां तक कि उसे क्राइस्ट के समान सलीब पर चढ़ा दिया गया हो और उसके कार्यों का नामोनिशान मिटाने का प्रयत्न किया हो, लेकिन ऐसे महान व्यक्ति अपने मानवीय कार्यों से अपने युग की स्मृति का अंग बनकर धीरे-धीरे पूरी जाति, देश और पूरे मानवीय संसार की स्मृति का अंग बन जाते हैं। इतिहास जहां राजाओं तथा तानाशाहों के युद्धों तथा क्रूरताओं से भरा है, वहां ऐसे महान व्यक्तियों के पुण्य-स्मरण से आने वाली पीढ़ियों के लिए भी उपयोगी एवं ज्ञानवर्धक बन जाता है।

इतिहास पुरुष की गाथा

प्रेमचंद और गांधी अथवा गांधी और प्रेमचंद ऐसे ही इतिहास पुरुष हैं, जो अपने युग में महान थे और आगामी युगों में भी महान बने रहेंगे। महात्मा गांधी अपने युग के और बीसवीं शताब्दी के श्रेष्ठतम व्यक्तियों में थे और वह अपने जीवन दर्शन और उसके अनुरूप अपने कार्यों से दक्षिण अफ्रीका, भारत तथा विश्व रंगमंच पर लगभग पचास वर्षों तक छाये रहे, लेकिन उनकी आलोचना भी कम नहीं हुई। वे जनता की दृष्टि मेें ‘मोहनदास करमचंद गांधी’ से ‘महात्मा गांधी तक पहुंचे, लेकिन गांधी ने स्वयं को ‘महात्मा’ कहने का कई बार विरोध किया और कहा कि इसे सुनकर मुझे हार्दिक क्लेश होता है। प्रेमचंद भी अपने युग में अपनी सभी प्रकार की प्रशस्ति और आलोचना के बावजूद जनता की दृष्टि में ‘उपन्यास सम्राट’ की पदवी तक पहुंचे।

एक महात्मा और एक उपन्यास सम्राट

गांधी और प्रेमचंद, दोनों ही पर अपने जीवनकाल में भिन्न-भिन्न प्रकार के लांछन लगाए गए, उनके कार्यों का अवमूल्यन हुआ, लेकिन यह भी सत्य है कि वे व्यापक मानवीय समाज में ‘महात्मा’ और ‘उपन्यास सम्राट’ के रूप में स्थापित और स्वीकृत हो गए थे। यह सदैव संभव है कि ऐसे महान व्यक्तियों का उनके जीवनकाल में अतिमूल्यांकन अथवा अवमूल्यन हो, प्रशस्ति और चाटुकारिता अथवा लांछन और आरोपण हो, क्योंकि उनकी सफलताओं और असफलताओं के मूल्यांकन में मूल्यांकनकर्ताओं की सीमित दृष्टि, निजी ईर्ष्या-द्वेष तथा परस्पर विरोधी विचारों के क्रियाशील रहने की संभावना होती है। अत महात्मा गांधी और प्रेमचंद के देहावसान के लगभग 50—60 वर्ष बाद उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को निकटता से देखना और उनका तुलनात्मक मूल्यांकन करना तटस्थता और निस्संगता से हो सकता है और सभी प्रकार के पूर्वाग्रहों से मुक्त हुआ जा सकता है।

अत अपने-अपने क्षेत्र के इन दो महान महानायकों के विवेचन में, प्रत्येक प्रकार की भावुकता और अतिवादिता से मुक्त होकर ही उनके व्यक्तित्व, कृतित्व, जीवन-दर्शन तथा मानवता के लिए उनके योगदान का सही-सही मूल्यांकन हो सकता है।

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