भारत रंग महोत्सव के तहत गुरुवार को प्रसिद्ध नाटककार दया प्रकाश सिन्हा की कृति ’कथा एक कंस की’ का मंचन करते कलाकार।
बालक, मित्र, सखा, प्रेमी और अंतत एक क्रूर शासक के रूप में कंस के चरित्र को दर्शाने वाला नाटक ‘कथा एक कंस की’ विविध आयामों को दर्शाता है।
इसका मंचन गुरुवार को श्रीराम सेंटर में किया गया। भारत रंग महोत्सव के तहत आयोजित यह नाटक प्रसिद्ध नाटककार दया प्रकाश सिन्हा की कृति है, जिसका निर्देशन रोहित त्रिपाठी ने किया। ‘कथा एक कंस की’ समकालीन नाट्य मुहावरे में एक प्रसिद्ध भारतीय पौराणिक कथा की पुर्नव्याख्या है। कंस को समाज के उस प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिसे दर्शकों के समक्ष उसके व्यक्तित्व के कई आयाम खुलते हैं।
वीणा वादक कंस, किसी की हत्या न करने वाला, बहन की गुड़िया ढूंढने के लिए नदी में कूद जाने वाला और अंतत बहन को ही कारागार में डालने वाला। कंस के विविध रूप देखकर नाटक में दर्शक इतिहास के उस कालखंड की ऐसी यात्रा कर रहे थे, जिसके कई पक्षों से वह अनजान थे। इस नाटक के माध्यम से कई सवाल उठते हैं कि क्या निर्मम या कठोर होना ही पुरुषत्व है? क्या वध करना, हथियार उठाना, हिंसक होना ही मर्दानगी है? क्या पुरुष कोमल नहीं हो सकता? सुंदर नहीं हो सकता? क्या उसकी आंखों में आंसू नहीं आ सकते.... ये कुछेक सवाल थे, जो मर्दानगी की सदियों से चली आ रही तथाकथित परिभाषा पर चोट करते हैं। कंस जो वीणा पसंद करता था, मगर उसके पिता ने उससे तलवार चलवाई।
वह कंस जो अपनी बहन से इतना प्यार करता था कि उसकी गुम हुई गुड़िया को ढूंढने के लिए नदी में कूद गया, लेकिन उसके पिता ने उसके अंदर राजमोह इतना कूट-कूटकर भर दिया कि अपना सिंहासन बचाने के लिए बहन का ही दुश्मन बन बैठा। ये कहानी है एक क्रूर खलनायक की, जिसकी परिभाषा में ही अमानव तत्व का जिक्र होता है।
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