निगाहों में रहने की आदत बदल दो
तुम्हें हम कहाँ तक छिपाते फिरेंगे
किसी ने जो पूछा ये किस्सा हमारा
तो किस किस को किस्सा बताते फिरेंगे
वो नज़दीक आ कर हमें कुछ बताएं
वो दो लफ्ज़ बोलेंगे नज़दीक आ कर
फिर एहसान हम पर जताते फिरेंगे
संभल जा ऐ दुनिया, संभल जा ज़माने
चले हैं वो घर से मेरे घर को आने
वो एक बार देखेंगे हँस कर जिधर भी
शहर भर में आतिश लगाते फिरेंगे
वो आएंगे पल भर को होगा मगर ये
रंगत बदल लेगा खुशियों से घर ये
वो आएंगे जाएंगे उनको भला क्या
हम खुश्बू में उनकी नहाते फिरेंगे
अभी वक़्त उनका है हँसते हैं हम पर
मगर उनकी हस्ती है हमारे ही दम पर
एक दिन वो आएगा हम उन जैसे होंगे
और वो हमको हर पल बुलाते फिरेंगे
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