एक गजल अहंकार के नाम
वो कहता है कि औरों की तरह हम भी तेरे तलवे चाटें,पर सुन, मेरा जमीर तेरी करतूतों का सहारा नहीं बनतामेरी त्योरियां चढ़ती हैं तेरी नाकामियों परसुन! तू बेपरवाह है, सब देखते रहे अंधों से मेरा रिश्ता नहीं जमतासुन! तू खेलता बहुत है हमारी खुशियों से,मैं भी इरादे का पक्का हूं, मुस्कुराना नहीं छोड़ूंगा।तुम्हारी नाकाबिलियत पर भी खामोश बैठूंसुन, इंसान हूं, पत्थर की मूरत नहीं हूं मैं।तू सोचता है कि सच की दुकान में झूठ बेचेगासुन, तेरा माल चीनी है, वो मकानों में ज्यादा नहीं टिकताअवसाद, विचलन, अतीत के तिमिर को हराकर यहां पहुंचा हूंसुन, यूं खुलेआम झूठ फैलाने का कारखाना नहीं चलने दूंगामाना कि ताकत में है तू, खुदा भी समझता है खुद को,पर सुन! तेरे कदमों में गिरकर सच का उजाला नहीं रुकने दूंगामैं जानता हूं, फिलहाल वक्त बुरा है मेरासुनो, नींद से उठने दो, फिर हर फैसले का हिसाब लूंगा
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