अथर्ववेद मंत्र 4/11/12 कहता है " वेद का स्वाध्याय कर्ता "सांयकाल दोहता है, प्रातःकाल दोहता है, दोपहर में दोहता है। इसके दूध उत्तमता से प्राप्त होते हैं" स्वाध्याय संदोह लिखे जाने के पीछे लाहौर नगर की एक घटना है। सन 1943 ई में आर्य प्रादेशिक प्रतिनिधि सभा का स्वर्ण जयंती उत्सव होने वाला था। ठा.अमर सिंह जी शास्त्रार्थमहारथी ने स्वामी वेदानंद तीर्थ जी को सुझाव दिया कि 365 मंत्रों का व्याख्या सहित संग्रह तैयार करें ताकि प्रतिदिन एक मंत्र का व्याख्या सहित स्वाध्याय करके पूरा वर्ष में ग्रंथ का पारायण हो जाये। प्रश् उठा इस ग्रंथ को कौन छापेगा? उस ग्रंथ को प्रादेशिक प्रतिनिधि सभा के स्वर्ण जयंती के अवसर पर छापा जाए। इस लिए सरल स्वभाव के स्नेही सभा - प्रधान ला. खुशहाल चंद खुर्संद ( बाद में आनन्द स्वामी जी) तुरंत स्वामी वेदानंद तीर्थ के पास पहुंचे और हाथ जोड़ कर इस प्रकार का ग्रंथ लिखने की प्रार्थना की। स्वामी वेदानंद जी ने इसे स्वीकार कर लिया। लाहौर नगर में गर्मी की ऋतु जोबन पर थी। सड़कों पर घोड़ों के तांगे बेहोश हो कर गिर जाया करते थे। स्वामी वेदानंद जिस कमरे में किराए पर रहते थे वहां आर-पार हवा भी नहीं आती थी। पंखे की सुविधा भी उपलब्ध नहीं थीं। परंतु यह ऋषि कार्य करने की लगन थी। लिखते लिखते जब बाजुओं से पसीना बहता तो स्वामी वेदानंद बाजुओं के नीचे काग़ज़ लगा लेते ताक पसीना कागज़ पर लिखे अक्षरों पर न पड़े। ग्रंथ तैयार हो गया तो बहुत बड़ा था। स्वामी जी को इसे संक्षिप्त करने को कहा गया। बहुत परिश्रम साध्य कार्य था पर स्वामी जी ने सहज स्वभाव से सागर को गागर में बंद करते हुए ग्रंथ को पूरा कर दिया।। इस का प्रथम संस्करण २००० वि संवत में छपा . #संस्करण #स्वभाव #सांयकाल #दोहता
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