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बांस ने बदल दी बांस बरेली के 4000 कारीगरों की जिंदगी

 बरेली में बने बांस के उत्पादों की है सात समंदर पार भी मांग, फर्नीचर, फीडर, टब, झूलों, सजावटी उत्पादों का विदेश में होता है निर्यात

बरेली, वरिष्ठ संवाददाता। बांस की कारीगरी ने बांस बरेली के 4000 कारीगरों की जिंदगी को बदल कर रख दिया। इन कारीगरों के बने उत्पाद न केवल भारत बल्कि सात समंदर पार भी पसंद किए जा रहे हैं। एक जिला एक उत्पाद योजना में भी बांस-बेंत कारीगरी को शामिल किया गया है।

जरी-जरदोजी के साथ ही बांस-बेंत उद्योग भी बरेली की बड़ी पहचान है। सरकारी आंकड़ों में बांस कारीगरों की संख्या लगभग 4000 है। जबकि बांस के उत्पाद बनाने वाले कारोबारियों की संख्या करीब 500 है। शासन ने भी इसके महत्व को स्वीकार करते हुए इसे एक जिला एक उत्पाद योजना में शामिल किया। योजना के तहत उद्यमियों को अपने प्रोजेक्ट के विस्तार के लिए लोन दिया गया। लोन से उद्यमियों ने एक से बढ़कर एक उत्पाद बनाने शुरू किए। इनमें पालतू कुत्तों और बिल्लियों के लिए बेड, फीडर और टब भी शामिल हैं। भारतीय लोगों की तुलना में विदेशियों ने इन उत्पादों को हाथों-हाथ लिया। अमेरिका, यूके और स्पेन के ग्राहकों की एक लंबी श्रृंखला बन गई है, जो इन उत्पादों को खरीद रहे हैं। उनकी अपनी पसंद है।

बांस के सजावटी उत्पाद की भारी मांग

बरेली में बने बांस-बेंत के गिफ्ट बास्केट, मिरर फ्रेम, लैंपशेड, कप, प्लेट, मग, जग, केतली, बोतल आदि की भी भारी मांग है। इनको विदेश भी भेजा रहा है। कोरोना के दौरान एक्सपोर्ट पर नकारात्मक असर पड़ा था। धीरे-धीरे कर अब यह काम फिर से पटरी पर आ गया है। खरीदार भी दुकानों पर पहुंचने लगे हैं।

पीढ़ियों से हो रहा है बांस का काम

बरेली के नाम के साथ ही बांस जुड़ा हुआ है। इस नाम को बांस और बेंत के कारोबारी फक्र के साथ लेते हैं। पुराने शहर की गलियों से लेकर पदारथपुर, ठिरिया, उड़ला जागीर, आलमपुर, गरगटा आदि गांवों में बांस के उत्पाद बनाने का काम पीढ़ियों से हो रहा है। पदारथपुर में साइकिल के आगे लगने वाली बांस की बास्केट भी खूब बनाई जाती थी। 90 फीसदी बास्केट केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु आदि प्रदेशों को भेजी जाती थी। फाइबर के बढ़ने से यह काम कुछ मंदा जरूर पड़ गया। मगर, बरेली के घरों में आज भी बांस का फर्नीचर लोगों की अपने शहर से मोहब्बत की गवाही देता है।

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