छह रुपये में 12 कपड़े सिलती थीं मेरी मां - नंद गोपाल नंदी
इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है, नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है। दुष्यंत कुमार की लइनों से स्टेट रिसोर्स ग्रुप रश्मि त्रिपाठी ने शिक्षक दिवस के कार्यक्रम में कैबिनेट मंत्री नंद गोपाल गुप्ता नंदी का परिचय दिया। कैबिनेट मंत्री ने कहा कि संचालन करने वाली बहन ने उनके जीवन के बारे मेंबहुत कुछ बता दिया है,लेकिन कुछ बातें अधूरी रह गई हैं। उन्हें बताना जरूरी हो गया है।
परिवार की माली हालत सही न होने के कारण फुटपाथ में गुब्बारे बेचे और दीपावली में पटाखे भी बेचे हैं। मन में कभी यह नहीं सोचा कि कोई बड़ा काम नहीं कर सकता। जब आगे बढ़ने का जज्बा और सोच होता है तो जरूर सफलता मिलती है। पिता डाकघर में चतुर्थ श्रेणी के थे। मां 2 कपड़े सिलती थीं और धागा अपना लगती थीं तब उन्हें छह रुपये मिलते थे। बच्चों को होली और दीपावली में नए कपड़े दिलाने के लिए वह महीनों मंत्री ने कहा-जब आगे बढ़ने का सोच होता है तो सफलता जरूर मिलती है जिंदगी में जब भी समझ आई, उसे चुनौती के रूप में लिया पैसे नहीं लेती थी। जब उनका बेटा यहां तक पहुंच सकता है तो कोई भी यहां तक पहुंच सकता है। टीवी देखने के लिए लोगों के जूते में पालिश करानी पड़ती थी। उन्होंने सभी छात्रों से कहा कि बच्चों एक बात की गांठ बांध लेना कि जरूरी नहीं है कि हमें विरासत में क्या मिला है? जरूरी यह है कि हम अपनी विरासत में क्या छोड़ कर जा रहे हैं? इसी सोच के साथ हम लोगों को आगे बढ़ना चाहिए। उन्होंने बताया कि मेरा नाम नंदी नहीं था। पिता ने नंद गोपाल नाम रखा था, लेकिन लोग उन्हें नंदी बैल कहकर चिदढ़ाने लगे। जिंदगी में जब भी समस्या आई हमेशा, उसको उन्होंने ४ ती के रूप में लिया। सोच था कि कोई भी बड़ा काम कर सकता हूं, वहीं सोच यहां तक लेकर आया है।
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