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सेवा और समर्पण के पुंज श्री अवधबिहारी जी

सेवा और समर्पण के पुंज श्री अवधबिहारी जी संघ के जीवनव्रती प्रचारक श्री अवधबिहारी जी का जन्म पांच जुलाई, 1926 को उ.प्र. के आजमगढ़ जिले और लालगंज तहसील के ग्राम पारा में हुआ था। वे मुंशी लक्ष्मी सहाय और श्रीमती जानकीदेवी की चौथी संतान थे। संघ से उनका संपर्क 1942 में हुआ, जब वे 16 वर्ष के किशोर थे। इसके बाद संघ के प्रति उनका प्रेम व समर्पण बढ़ता गया। 1946 में पढ़ाई को उन्होंने विराम दे दिया और प्रचारक बन कर संघ कार्य के लिए समर्पित हो गये। सरसंघचालक श्री गुरुजी का उनके जीवन पर विशेष प्रभाव था। 1946 से 1960 तक वे जौनपुर तथा वाराणसी तहसीलों में प्रचारक रहे। उन दिनों प्रचारकों को साइकिल और अपने पैरों का ही सहारा होता था। अवध जी ने इनके ही दम पर दूरस्थ क्षेत्रों में शाखाएं खड़ी कीं। 1961 से 1971 तक उन पर सुल्तानपुर और फिर फैजाबाद जिला प्रचारक का काम रहा। इसके बाद एक वर्ष सह विभाग प्रचारक और फिर विभाग प्रचारक के नाते 1977 तक उनका केन्द्र आजमगढ़ रहा। आपातकाल और संघ पर प्रतिबंध के दौरान, 1975 से 77 तक वे पूरे समय कारावास में रहे। अवध जी की संघ के शारीरिक कार्यक्रमों में बहुत रुचि थी। पहले संघ शिक्षा वर्गों में लाठी, छुरिका, शूल, वेत्रचर्म आदि सिखाये जाते थे। फिर इनमें कुछ परिवर्तन हुआ। अवध जी और काशी वि.वि. के डा. शंकर तत्ववादी ने योगचाप (लेजम) सीख कर उसे संघ शिक्षा वर्गों में लागू कराया। आपातकाल के बाद संघ की योजना से कई कामों को देशव्यापी बनाया गया। इनमें वनवासी और गिरिवासियों के बीच चलने वाला ‘वनवासी कल्याण आश्रम’ का काम भी था। ईसाई मिशन वाले सेवा के नाम पर उनके बीच घुसकर धर्मान्तरण करा रहे थे। उ.प्र. में इसे शुरू करने की जिम्मेदारी अवध जी को दी गयी। उन्होंने ‘सेवा समर्पण संस्थान’ के नाम से संस्था का पंजीकरण कराया। पूर्वी उ.प्र. तथा पश्चिमी उ.प्र. के पर्वतीय क्षेत्र में कई जनजातियां रहती हैं। इनकी शैक्षिक, सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। अवध जी ने इनके बीच सेवा के अनेक काम शुरू किये। इसके साथ ही असम, झारखंड, उड़ीसा आदि में चलने वाले वनवासी सेवा केन्द्रों के लिए उत्तर प्रदेश से धन भी एकत्र कर भेजा। 1982 से 1986 तक उनका केन्द्र रांची रहा। अब उन पर उत्तर प्रदेश के साथ बिहार का काम भी था। 1987 से 97 तक उन पर मध्य प्रदेश का काम रहा। वहां भोपाल, जबलपुर, रायपुर और जशपुर काम के बड़े केन्द्र थे। 1997 में कल्याण आश्रम के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री की जिम्मेदारी देकर फिर उनका केन्द्र रांची बनाया गया। 2007 में वृद्धावस्था के कारण ‘अखिल भारतीय कार्यकर्ता प्रमुख’ की जिम्मेदारी देकर उनके काम को कुछ हल्का किया गया; पर झारखंड में उनके सम्पर्कों की उपयोगिता देखते हुए उनका केन्द्र रांची ही रखा गया। अवध जी एक आदर्श कार्यकर्ता थे। जनता सरकार में उन्हें ‘खादी ग्रामोद्योग बोर्ड’ का उपाध्यक्ष बनाया गया था। इससे उन्हें मानदेय और गाड़ी की सुविधा मिल गयी; पर उन्होंने कार लौटा दी और केवल एक रु. मानदेय लेना स्वीकार किया। कुछ साल बाद उन्होंने यह पद छोड़ दिया और इस दौरान भत्तों के रूप में प्राप्त 5,000 रु. भी कल्याण आश्रम को ही दे दिये। अवध जी का जीवन बहुत सादगीपूर्ण था। धोती, कुर्ता, अंगोछा और एक झोले में जरूरी चीजें यही उनकी बाहरी पूंजी थी; पर अपने जीवन और व्यवहार से उन्होंने हजारों कार्यकर्ताओं को अनुप्राणित किया। उन्होंने सैकड़ों सेवा केन्द्र खोले, जिससे वनवासियों में धर्मान्तरण रुका और परावर्तन की प्रक्रिया शुरू हुई। ऐसे अधिकांश केन्द्र आज भी चल रहे हैं।

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