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RSS-BJP: आरएसएस-भाजपा में क्यों उमड़ रहा मुसलमानों के प्रति प्रेम, क्या है भागवत और मोदी की असली रणनीति?





RSS-BJP: राजनीतिक विश्लेषक सुनील पांडेय का कहना है कि पीएम नरेंद्र मोदी भारत को दुनिया में बड़ी आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभारने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन वे भी यह जानते हैं कि छोटे-छोटे कारोबार से देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती दे रहे मुस्लिम समुदाय को साथ लिए बिना यह सपना पूरा नहीं हो सकता...


राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) और भाजपा के बीच मुसलमानों के मुद्दे पर हाल के दिनों में बेहतरीन तालमेल देखने को मिल रहा है। दोनों ही संगठनों के नेता लगातार मुसलमानों को साधने की कोशिश करते हुए दिखाई पड़ रहे हैं। संघ प्रमुख मोहन भागवत मुसलमानों के बिना हिंदुस्तान के पूरा न होने की बात करते हैं, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा की हैदराबाद राष्ट्रीय कार्यकारिणी में एलान कर देते हैं कि पार्टी का मिशन मुसलमानों के करीब तक पहुंचने का होना चाहिए। कश्मीर के नेता गुलाम अली खटाना को राज्यसभा में भेजना भी संघ परिवार की मुसलमानों से करीबी बढ़ाने की इसी सोच की एक मिसाल है। संघ और भाजपा में मुसलमानों के प्रति आ रहे इस बदलाव का कारण क्या है? यह अंतरराष्ट्रीय मुस्लिम बिरादरी के बीच भारत की छवि बेहतर करने की कोशिश है या इसके जरिए संघ किसी बड़े बदलाव की योजना बना रहा है?

भागवत ने बोला था, हिंदू और मुसलमानों का डीएनए एक है

हालांकि, ऐसा नहीं है कि भाजपा और आरएसएस ने मुसलमानों के करीब पहुंचने की यह कोई पहली कोशिश की हो। दोनों ही संगठन लंबे समय से हिंदू-मुस्लिम एकता की बात करते रहे हैं। भाजपा में तो इसके स्थापना काल से ही कई मुस्लिम नेता इसके सर्वोच्च नेताओं में शुमार रहे हैं। सिकंदर बख्त की लोकप्रियता आम जनता के बीच भले ही कम रही हो, लेकिन पार्टी संगठन में उनकी अहमियत अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जैसी ही रही।



संघ ने भी अनेक मौके पर यह साफ किया है कि उसे उन मुसलमानों से कोई परेशानी नहीं है जो भारत को अपनी मातृभूमि मानते हैं और यहां की संस्कृति को अपना समझते हैं। यह क्रम गुरु गोलवलकर ने शुरू किया था, जो संघ प्रमुख मोहन भागवत के 2018 के उस बयान में भी दिखाई पड़ा, जब उन्होंने मुसलमानों के बिना हिंदुस्तान अधूरा होने की बात कही। उन्होंने भी यह बताने की कोशिश की कि हिंदू और मुसलमानों का डीएनए एक है, और दोनों ही इस देश के मूल निवासी हैं। इस देश की संस्कृति को बचाए रखना भी दोनों की ही जिम्मेदारी है।

इस स्थिति के बाद भी सच्चाई यह रही है कि दोनों संगठनों से मुस्लिम समुदाय की दूरी बनी रही। इसके लिए भाजपा का अपना राजनीतिक आधार बढ़ाने की तिकड़मों को ज्यादा जिम्मेदार बताया जाता है। हाल के दिनों में जब कर्नाटक में दोनों समुदायों के बीच हिजाब के मुद्दे पर तनाव बढ़ा तब भी इसे इसी दृष्टि से जोड़कर देखा गया। लेकिन माना जा रहा है कि संघ और भाजपा अब इस दौर से आगे की राजनीति करना चाहते हैं जिसके लिए वे मुसलमान समुदाय को भी अपने साथ साधना चाहते हैं। मुस्लिम समुदाय तक पहुंचने की कोशिशों को इसी कड़ी से जोड़कर देखा जा सकता है।

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