Header Ads Widget

वो जो ख़्वाब थे मेरे ज़ेहन में, न मैं कह सका न मैं लिख सका -


 
वो जो ख्वाब थे मेरे जेहन में
ना मैं कह सका ना लिख सका
ज़बाँ मिली तो कटी हुई
की कलम मिला तो बिका हुआ

तू जो हर रोज़ नए हुस्न पे मर जाता है
तू बताएगा मुझे इश्क़ है क्या? जाने दे

कभी जो ख्वाब था वो पा लिया है
मगर जो खो गई वो चीज़ क्या थी

सोचता हूँ कि उस की याद आख़िर
अब किसे रात भर जगाती है

उसने सारी दुनिया मांगी, मैंने उसको माँगा है
उसके सपने एक तरफ है, मेरा सपना एक तरफ

ख्वाबों को आँखों से मिन्हा करती है
नींद हमेशा मुझसे धोखा करती है।

मुद्दतों ब'अद मयस्सर हुआ माँ का आँचल
मुद्दतों ब'अद हमें नींद सुहानी आई

आज फिर नींद को आँखों से बिछड़ते देखा
आज फिर याद कोई चोट पुरानी आई

Post a Comment

0 Comments