एपीजे अब्दुल कलाम की जिंदगी के अनसुने किस्से, जानिए उन्हें क्यों कहा जाता था जनता का राष्ट्रपति
अपनी सरकार के गिरने से पहले बीजेपी के तानों से तंग आ कर कि वो एक 'कमजोर' प्रधानमंत्री हैं, इंदर कुमार गुजराल ने तय किया कि वो भारतवासियों और दुनिया वालों को बताएंगे कि वो भारतीय सुरक्षा को कितनी ज्यादा तरजीह देते हैं। उन्होंने 'मिसाइल मैन' के नाम से मशहूर एपीजे अब्दुल कलाम को भारत रत्न से सम्मानित करने का फैसला लिया। इससे पहले 1952 में सी. वी. रमण को छोड़कर किसी वैज्ञानिक को इस पुरस्कार के लायक नहीं समझा गया था।
एक मार्च, 1998 को राष्ट्रपति भवन में भारत रत्न के पुरस्कार वितरण समारोह में कलाम नर्वस थे और अपनी नीली धारी की टाई को बार-बार छू कर देख रहे थे। कलाम को इस तरह के औपचारिक मौकों से चिढ़ थी, जहां उन्हें उस तरह के कपड़े पहनने पड़ते थे जिसमें वो अपनेआप को कभी सहज नहीं पाते थे। सूट पहनना उन्हें कभी रास नहीं आया। यहां तक कि वो चमड़े के जूतों की जगह हमेशा स्पोर्ट्स शू पहनना ही पसंद करते थे।
भारत रत्न का सम्मान ग्रहण करने के बाद उन्हें सबसे पहले बधाई देने वालों में से एक थे अटल बिहारी वाजपेई। वाजपेई की कलाम से पहली मुलाकात अगस्त, 1980 में हुई थी जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें और प्रोफेसर सतीश धवन को एसएलवी 3 के सफलतापूर्ण प्रक्षेपण के बाद प्रमुख सांसदों से मिलने के लिए बुलवाया था।
कलाम को जब इस आमंत्रण की भनक मिली तो वो घबरा गए और धवन से बोले, सर मेरे पास न तो सूट है और न ही जूते। मेरे पास ले दे के मेरी चेर्पू है (चप्पल के लिए तमिल शब्द )। तब सतीश धवन ने मुस्कराते हुए उनसे कहा था, 'कलाम तुम पहले से ही सफलता का सूट पहने हुए हो। इसलिए हर हालत में वहां पहुंचो।'
वाजपेई ने दिया था कलाम को मंत्री बनने का न्योता
मशहूर पत्रकार राज चेंगप्पा अपनी किताब 'वेपेंस ऑफ पीस' में लिखते हैं, 'उस बैठक में जब इंदिरा गांधी ने कलाम का अटल बिहारी वाजपेई से परिचय कराया तो उन्होंने कलाम से हाथ मिलाने की बजाए उन्हें गले लगा लिया। ये देखते ही इंदिरा गांधी शरारती ढंग से मुस्कराईं और उन्होंने वाजपेई की चुटकी लेते हुए कहा, 'अटल जी लेकिन कलाम मुसलमान हैं।' तब वाजपेई ने जवाब दिया, 'जी हां, लेकिन वो भारतीय पहले हैं और एक महान वैज्ञानिक हैं।'
18 दिन बाद जब वाजपेई दूसरी बार प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने कलाम को अपने मंत्रिमंडल में शामिल होने का न्योता दिया। अगर कलाम इसके लिए राजू हो जाते तो वाजपेई को न सिर्फ एक काबिल मंत्री मिलता बल्कि पूरे भारत के मुसलमानों को ये संदेश जाता कि उनकी बीजेपी की सरकार में अनदेखी नहीं की जाएगी।
कलाम ने इस प्रस्ताव पर पूरे एक दिन विचार किया। अगले दिन उन्होंने वाजपेई से मिल कर बहुत विनम्रतापूर्वक इस पद को अस्वीकार कर दिया। उन्होंने कहा कि 'रक्षा शोध और परमाणु परीक्षण कार्यक्रम अपने अंतिम चरण में पहुंच रहा है। वो अपनी वर्तमान जिम्मेदारियों को निभा कर देश की बेहतर सेवा कर सकते हैं।' दो महीने बाद पोखरण में परमाणु विस्फोट के बाद ये स्पष्ट हो गया कि कलाम ने वो पद क्यों नहीं स्वीकार किया था।
वाजपेई ने ही कलाम को चुना राष्ट्रपति पद के लिए
10 जून, 2002 को एपीजे अब्दुल कलाम को अन्ना विश्वविद्यलय के कुलपति डॉक्टर कलानिधि का संदेश मिला कि प्रधानमंत्री कार्यालय उनसे संपर्क स्थापित करने की कोशिश कर रहा है, इसलिए आप तुरंत कुलपति के दफ्तर चले आइए ताकि प्रधानमंत्री से आपकी बात हो सके। जैसे ही उन्हें प्रधानमंत्री कार्यालय से कनेक्ट किया गया, वाजपेई फोन पर आए और बोले, 'कलाम साहब देश को राष्ट्रपति के रूप में आपकी जरूरत है।' कलाम ने वाजपेई को धन्यवाद दिया और कहा कि इस पेशकश पर विचार करने के लिए मुझे एक घंटे का समय चाहिए। वाजपेई ने कहा, 'आप समय जरूर ले लीजिए, लेकिन मुझे आपसे हां चाहिए, ना नहीं।'
शाम तक एनडीए के संयोजक जॉर्ज फर्नान्डिस, संसदीय कार्य मंत्री प्रमोद महाजन, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने संयुक्त संवाददाता सम्मेलन आयोजित कर कलाम की उम्मीदवारी का ऐलान कर दिया। जब डॉक्टर कलाम दिल्ली पहुंचे तो हवाईअड्डे पर रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नान्डिस ने उनका स्वागत किया।
कलाम ने एशियाड विलेज में डीआरडीओ गेस्ट हाउस में रहना पसंद किया। 18 जून, 2002 को कलाम ने अटल बिहारी वाजपेई और उनके मंत्रिमंडल सहयोगियों की उपस्थिति में अपना नामांकन पत्र दाखिल किया। पर्चा भरते समय वाजपेई ने उनके साथ मजाक किया कि 'आप भी मेरी तरह कुंवारे हैं' तो कलाम ने ठहाकों के बीच जवाब दिया, 'प्रधानमंत्री महोदय मैं न सिर्फ कुंवारा हूं बल्कि ब्रह्मचारी भी हूं।'
कलाम सूट बनने की कहानी
कलाम के राष्ट्रपति बनने के बाद सबसे बड़ी समस्या ये आई कि वो पहनेंगे क्या? बरसों से नीली कमीज और स्पोर्ट्स शू पहन रहे कलाम राष्ट्रपति के रूप में तो वो सब पहन नहीं सकते थे। राष्ट्रपति भवन का एक दर्जी था जिसने पिछले कई राष्ट्रपतियों के सूट सिले थे। एक दिन आ कर उसने डॉक्टर कलाम की भी नाप ले डाली।
कलाम के जीवनीकार और सहयोगी अरुण तिवारी अपनी किताब 'एपीजे अब्दुल कलाम अ लाइफ' में लिखते हैं, 'कुछ दिनों बाद दर्जी कलाम के लिए चार नए बंदगले के सूट सिल कर ले आया। कुछ ही मिनटों में हमेशा लापरवाही से कपड़े पहनने वाले कलाम की काया ही बदल गई, लेकिन कलाम इससे खुद खुश नहीं थे। उन्होंने मुझसे कहा, 'मैं तो इसमें सांस ही नहीं ले सकता। क्या इसके कट में कोई परिवर्तन किया जा सकता है?'
परेशान दर्जी सोचते रहे कि क्या किया जाए। कलाम ने खुद ही सलाह दी कि इसे आप गर्दन के पास से थोड़ा काट दीजिए। इसके बाद से कलाम के इस कट के सूट को 'कलाम सूट' कहा जाने लगा। नए राष्ट्रपति को टाई पहनने से भी नफरत थी। बंद गले के सूट की तरह टाई से भी उनका दम घुटता था। एक बार मैंने उन्हें अपनी टाई से अपना चश्मा साफ करते हुए देखा। मैंने उनसे कहा कि आपको ऐसा नहीं करना चाहिए। उनका जवाब था, टाई पूरी तरह से उद्देश्यहीन वस्त्र है। कम से कम मैं इसका कुछ तो इस्तेमाल कर रहा हूं।'
नियम से सुबह की नमाज पढ़ते थे कलाम
बहुत व्यस्त राष्ट्रपति होने के बावजूद कलाम अपने लिए कुछ समय निकाल ही लेते थे। उनको रुद्र वीणा बजाने का बहुत शौक था। डॉक्टर कलाम के प्रेस सचिव रहे एस. एम. खां ने मुझे बताया था, 'वो वॉक करना भी पसंद करते थे, वो भी सुबह दस बजे या दोपहर चार बजे। वो अपना नाश्ता सुबह साढ़े दस बजे लेते थे, इसलिए उनके लंच में देरी हो जाती थी। उनका लंच दोपहर साढ़े चार बजे होता था और डिनर अक्सर रात 12 बजे के बाद। डॉक्टर कलाम धार्मिक मुसलमान थे और हर दिन सुबह यानि फज्र की नमाज पढ़ा करते थे। मैंने अक्सर उन्हें कुरान और गीता पढ़ते हुए भी देखा था। वो स्वामी थिरुवल्लुवर के उपदेशों की किताब 'थिरुक्कुरल' तमिल में पढ़ा करते थे। वो पक्के शाकाहारी थे और शराब से उनका दूर-दूर का वास्ता नहीं था। पूरे देश में निर्देश भेज दिए गए थे कि वो जहां भी ठहरें उन्हें सादा शाकाहारी खाना ही परोसा जाए। उनको महामहिम या 'हिज एक्सलेंसी' कहलाना भी कतई पसंद नहीं था।'
लेकिन कुछ हल्कों में ये शिकायत अक्सर सुनी गई कि केसरिया खेमे के प्रति उनका 'सॉफ्ट कॉर्नर' था। उस खेमे से ये संदेश देने की भी कोशिश की गई कि भारत के हर मुसलमान को उनकी तरह ही होना चाहिए और जो इस मापदंड पर खरा नहीं उतरता उसके आचरण को सवालों के घेरे में लाया जा सकता है।
कलाम द्वारा बीजेपी की समान नागरिक संहिता की मांग का समर्थन करने पर भी कुछ भौंहें उठीं। वामपंथियों और बुद्धिजीवियों के एक वर्ग को कलाम का सत्य साईं बाबा से मिलने पुट्टपार्थी जाना भी अखरा। उनकी शिकायत थी कि वैज्ञानिक सोच की वकालत करने वाला शख्स ऐसा कर लोगों के सामने गलत उदाहरण पेश कर रहा है।
अपने परिवार को राष्ट्रपति भवन में ठहराने के लिए कलाम ने काटा साढ़े तीन लाख का चेक
डॉक्टर कलाम को अपने बड़े भाई एपीजे मुत्थू मराइकयार से बहुत प्यार था, लेकिन उन्होंने कभी उन्हें अपने साथ राष्ट्रपति भवन में रहने के लिए नहीं कहा। उनके भाई का पोता गुलाम मोइनुद्दीन उस समय दिल्ली में काम कर रहा था जब कलाम भारत के राष्ट्रपति थे। लेकिन वो तब भी मुनिरका में किराए के एक कमरे में रहा करता था।
मई 2006 में कलाम ने अपने परिवार के करीब 52 लोगों को दिल्ली आमंत्रित किया। ये लोग आठ दिन तक राष्ट्रपति भवन में रुके। कलाम के सचिव रहे पीएम नायर ने मुझे बताया था, 'कलाम ने उनके राष्ट्रपति भवन में रुकने का किराया अपनी जेब से दिया। यहां तक कि एक प्याली चाय तक का भी हिसाब रखा गया। वो लोग एक बस में अजमेर शरीफ भी गए जिसका किराया कलाम ने भरा। उनके जाने के बाद कलाम ने अपने अकाउंट से तीन लाख बावन हजार रुपयों का चेक काट कर राष्ट्रपति भवन कार्यालय को भेजा।'
दिसंबर 2005 में उनके बड़े भाई एपीजे मुत्थू मराइकयार, उनकी बेटी नाजिमा और उनका पोता गुलाम हज करने मक्का गए। जब सऊदी अरब में भारत के राजदूत को इस बारे में पता चला तो उन्होंने राष्ट्रपति को फोन कर परिवार को हर तरह की मदद देने की पेशकश की। कलाम का जवाब था, 'मेरा आपसे यही अनुरोध है कि मेरे 90 साल के भाई को बिना किसी सरकारी व्यवस्था के एक आम तीर्थयात्री की तरह हज करने दें।'
इफ्तार का पैसा दिया अनाथालय को
नायर ने मुझे एक और दिलचस्प किस्सा सुनाया। 'एक बार नवंबर, 2002 में कलाम ने मुझे बुला कर पूछा, 'ये बताइए कि हम इफ्तार भोज का आयोजन क्यों करें? वैसे भी यहां आमंत्रित लोग खाते पीते लोग होते हैं। आप इफ्तार पर कितना खर्च करते हैं।' राष्ट्रपति भवन के आतिथ्य विभाग को फोन लगाया गया। उन्होंने बताया कि इफ्तार भोज में मोटे तौर पर ढाई लाख रुपये का खर्च आता है। कलाम ने कहा, 'हम ये पैसा अनाथालय को क्यों नहीं दे सकते? आप अनाथालयों को चुनिए और ये सुनिश्चित करिए कि ये पैसा बर्बाद न जाए।'
राष्ट्रपति भवन की ओर से इफ्तार के लिए निर्धारित राशि से आटे, दाल, कंबलों और स्वेटरों का इंतजाम किया गया और उसे 28 अनाथालयों के बच्चों में बांटा गया, लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हो गई। कलाम ने मुझे फिर बुलाया और जब कमरे में वो और मैं अकेले थे, उन्होंने कहा, 'ये सामान तो आपने सरकार के पैसे से खरीदवाया है। इसमें मेरा योगदान तो कुछ भी नहीं है। मैं आपको एक लाख रुपये का चेक दे रहा हूं। उसका भी उसी तरह इस्तेमाल करिए जैसे आपने इफ्तार के लिए निर्धारित पैसे का किया है, लेकिन किसी को ये मत बताइए कि ये पैसे मैंने दिए हैं।'
गैर राजनीतिक राष्ट्रपति
कलाम शायद भारत के पहले गैर राजनीतिक राष्ट्रपति थे। उनके समकक्ष अगर किसी को रखा जा सकता है तो वो थे डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन। लेकिन राधाकृष्णन भी पूरी तरह से गैर राजनीतिक नहीं थे और सोवियत संघ में भारत के राजदूत रह चुके थे।
कलाम की राजनीतिक अनुभवहीनता तब उजागर हुई जब उन्होंने 22 मई की आधी रात को बिहार में राष्ट्रपति शासन लगाने का अनुमोदन कर दिया, वो भी उस समय जब वो रूस की यात्रा पर थे। बिहार विधानसंभा चुनाव में किसी भी पार्टी के बहुमत न मिलने पर राज्यपाल बूटा सिंह ने बिना सभी विकल्पों को तलाशे बिहार में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर दी।
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक बैठक के बाद उसे तुरंत राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के लिए फैक्स से मॉस्को भेज दिया। कलाम ने इस सिफारिश पर रात डेढ़ बजे बिना किसी हील हुज्जत के दस्तखत कर दिए, लेकिन पांच महीने बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को गैर-संवैधानिक करार दे दिया जिसकी वजह से यूपीए सरकार और खुद कलाम की बहुत किरकिरी हुई।
कलाम ने खुद अपनी किताब 'अ जर्नी थ्रू द चैलेंजेज' में जिक्र किया कि वो सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से इतना आहत हुए थे कि उन्होंने इस मुद्दे पर इस्तीफा देने का मन बना लिया था, लेकिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उन्हें ये कह कर ऐसा न करने के लिए मनाया कि इससे देश में बवंडर हो जाएगा।
मोर का ट्यूमर निकलवाया
लेकिन इसके बावजूद डॉक्टर कलाम का मानवीय पक्ष बहुत मजबूत था। एक बार वो जाड़े के दौरान राष्ट्रपति भवन के गार्डेन में टहल रहे थे। उन्होंने देखा कि सुरक्षा गार्ड के केबिन में हीटिंग की कोई व्यवस्था नहीं है और कड़ाके की ठंड में सुरक्षा गार्ड की कंपकपी छूट रही है। उन्होंने तुरंत संबंधित अधिकारियों को बुलाया और उनसे गार्ड के केबिन में जाड़े के दौरान हीटर और गर्मी के दौरान पंखा लगवाने की व्यवस्था करवाई।
एसएम खां ने एक किस्सा और सुनाया, 'एक बार मुगल गार्डेन में टहलने के दौरान उन्होंने देखा कि एक मोर अपना मुंह नहीं खोल पा रहा है। उन्होंने तुरंत राष्ट्रपति भवन के वेटरनरी डॉक्टर सुधीर कुमार को बुला कर मोर की स्वास्थ्य जांच करने के लिए कहा। जांच करने पर पता चला कि मोर के मुंह में ट्यूमर है जिसकी वजह से वो न तो अपना मुंह खोल पा रहा और न ही बंद कर पा रहा है। वो कुछ भी खा नहीं पा रहा था और बहुत तकलीफ में था। कलाम के कहने पर डॉक्टर कुमार ने उस मोर की आपात सर्जरी की और उसका ट्यूमर निकाल दिया। उस मोर को कुछ दिनों तक आईसीयू में रखा गया और पूरी तरह ठीक हो जाने के बाद मुगल गार्डेन में छोड़ दिया गया।'
तंजानिया के बच्चों की मुफ्त हार्ट सर्जरी
15 अक्तूबर, 2005 को अपने 74वें जन्मदिन के दिन कलाम हैदराबाद में थे। उनके दिन की शुरुआत हुई हृदय रोग से पीड़ित तंजानिया के कुछ बच्चों से मुलाकात के साथ, जिनका हैदराबाद के केयर अस्पताल में ऑपरेशन किया गया था। उन्होंने हर बच्चे के सिर पर हाथ फेरा और उन्हें टॉफी का एक एक डिब्बा दिया जिन्हें वो दिल्ली से लाए थे। बाहर बैठे आंध्र प्रदेश को राज्यपाल सुशील कुमार शिंदे, मुख्यमंत्री राजशेखर रेड्डी और तेलगु देशम के प्रमुख चंद्रबाबू नायडू इंतजार कर रहे थे। उनकी समझ में ही नहीं आ रहा था कि इन बच्चों को उनके ऊपर तरजीह क्यों दी जा रही है?
अरुण तिवारी एपीजे कलाम की जीवनी में लिखते हैं, 'हुआ ये कि सितंबर 2000 में तंजानिया की यात्रा के दौरान कलाम को पता चला कि वहां जन्मजात दिल की बीमारी से पीड़ित बच्चे बिना किसी इलाज के मर रहे हैं। वहां से लौटने के बाद उन्होंने मुझसे कहा कि किसी भी तरह इन बच्चों और उनकी मांओं को दारेस्सलाम से हैदराबाद लाने की मुफ्त व्यवस्था करो। उन्होंने मुझसे वी. तुलसीदास से बात करने के लिए कहा जो उस समय एयर इंडिया के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक थे। वो इस काम में मदद करने के लिए राजी हो गए। फिर केयर अस्पताल के प्रमुख डॉक्टर सोमा राजू और वहां के प्रमुख हार्ट सर्जन डॉक्टर गोपीचंद मन्नाम भी इनका मुफ्त इलाज करने के लिए तैयार हो गए। भारत में तंजानिया की उच्चायुक्त इवा न्जारो इन बच्चों की पहचान के लिए दारेस्सलाम गईं। 24 बच्चों और उनकी मांओं को दारेस्सलाम से हैदराबाद लाया गया। केयर फाउंडेशन ने पचास लोगों के ठहरने और खाने की मुफ्त व्यवस्था की। ये सब लोग हैदराबाद में एक महीने रुक कर इलाज कराने के बाद सकुशल तंजानिया लौटे।'
कलाम की सैम मानेक शॉ से मुलाकात
जब कलाम का कार्यकाल खत्म होने लगा तो उन्होंने 1971 की लड़ाई के हीरो फील्डमार्शल सैम मानेक शॉ से मिलने की इच्छा प्रकट की। वो फरवरी 2007 में उनसे मिलने ऊटी भी गए। उनसे मिलने के बाद कलाम को अंदाजा हो गया कि मानेक शॉ को फील्डमार्शल जैसी पदवी तो दे दी गई है, लेकिन उसके साथ मिलने वाले भत्ते और सुविधाएं नहीं दी गई हैं। दिल्ली लौटने के बाद उन्होंने इस दिशा में कुछ करने का फैसला किया। फील्डमार्शल मानेक शॉ के साथ-साथ मार्शल अर्जन सिंह को भी सारे बकाया भत्तों का भुगतान कराया गया उस दिन से जिस दिन से उन्हें ये पद दिया गया था।
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