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सूचना का अधिकार सूचना का अधिकार क्या है?




सूचना का अधिकार


सूचना का अधिकार क्या है?
सूचना के अधिकार के तहत भारत का कोई भी नागरिक, किसी भी लोक प्राधिकारी अथवा उसके नियंत्रणाधीन, किन्ही भी दस्तावेजों,अभिलेखों का निरीक्षण कर सकता है, इन अभिलेखों,दस्तावेजों की प्रामाणिक प्रति प्राप्त कर सकता है, जहां सूचना किसी कम्प्यूटर या अन्य युक्ति में भंडारित है, तो ऐसी सूचना को डिस्केट,टेप या वीडियो कैसेट के रूप में प्राप्त कर सकता है। साथ ही इस अधिकार के तहत सामग्री के प्रामाणिक नमूने लेने का भी प्रावधान है।आरटीआई अधिनियम पूरे भारत में लागू है (जम्‍मू और कश्‍मीर राज्‍य के अलावा) जिसमें सरकार की अधिसूचना के तहत आने वाले सभी निकाय शामिल हैं जिसमें ऐसे गैर सरकारी संगठन भी शामिल है जिनका स्‍वामित्‍व, नियंत्रण अथवा आंशिक निधिकरण सरकार द्वारा किया गया है।

सूचना के अधिकार कानून:
सूचना का अधिकार अधिनियम हर नागरिक को अधिकार देता है कि वह -सरकार से कोई भी सवाल पूछ सके या कोई भी सूचना ले सके.
किसी भी सरकारी दस्तावेज़ की प्रमाणित प्रति ले सके.
किसी भी सरकारी दस्तावेज की जांच कर सके.
किसी भी सरकारी काम की जांच कर सके.
किसी भी सरकारी काम में इस्तेमाल सामिग्री का प्रमाणित नमूना ले सके.
सूचना अधिकार के दायरे में विभागराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल और मुख्यमंत्री दफ्तर
संसद और विधानमंडल
चुनाव आयोग
सभी अदालतें
तमाम सरकारी दफ्तर
सभी सरकारी बैंक
सारे सरकारी अस्पताल
पुलिस महकमा
सेना के तीनों अंग
पीएसयू
सरकारी बीमा कंपनियां
सरकारी फोन कंपनियां

सरकार से फंडिंग पाने वाले एनजीओ
इन पर लागू नहीं होता सूचना अधिकार कानूनकिसी भी खुफिया एजेंसी की वैसी जानकारियां, जिनके सार्वजनिक होने से देश की सुरक्षा और अखंडता को खतरा हो
दूसरे देशों के साथ भारत से जुड़े मामले
थर्ड पार्टी यानी निजी संस्थानों संबंधी जानकारी लेकिन सरकार के पास उपलब्ध इन संस्थाओं की जानकारी को संबंधित सरकारी विभाग के जरिए हासिल कर सकते हैं
सूचना अधिकार के दायरे में आते हैं प्राइवेट फोन कंपनियां: इनकी जानकारी संचार मंत्रालय के जरिये ली जा सकती है।
स्कूल-कॉलेज: सरकारी सहायता प्राप्त प्राइवेट स्कूल भी इसके दायरे में आते हैं। सरकारी सहायता नहीं लेने वाले स्कूलों पर यह कानून नहीं लागू होता, लेकिन शिक्षा विभाग के जरिए उनकी जानकारी भी ली सकती है। कॉलेजों के मामले में भी यही नियम है।सभी सरकारी विभाग, पब्लिक सेक्टर यूनिट, किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता से चल रहीं गैर सरकारी संस्थाएं व शिक्षण संस्थाएं, आदि विभाग इसमें शामिल हैं. पूर्णत: निजी संस्थाएं इस कानून के दायरे में नहीं हैं लेकिन यदि किसी कानून के तहत कोई सरकारी विभाग किसी निजी संस्था से कोई जानकारी मांग सकता है तो उस विभाग के माध्यम से वह सूचना मांगी जा सकती है।
इन बातों का रखें ध्यान किसी भी विभाग से सूचना मांगने में यह ध्यान रखें कि सीधा सवाल पूछा जाए। सवाल घूमा-फिराकर नहीं पूछना चाहिए। सवाल ऐसे होने चाहिए, जिसका सीधा जवाब मिल सके। इससे जन सूचना अधिकारी आपको भ्रमित नहीं कर सकेगा।
एप्लिकेंट को इसका भी ध्यान रखना चाहिए कि आप जो सवाल पूछ रहे हैं, वह उसी विभाग से संबंधित है या नहीं। उस विभाग से संबंधित सवाल नहीं होने पर आपको जवाब नहीं मिलेगा। हो सकता है आपको जवाब मिलने में बेवजह देरी भी हो सकती है।
एप्लिकेशन स्पीड पोस्ट से ही भेजनी चाहिए। इससे आपको पता चल जाएगा कि पीआईओ को एप्लिकेशन मिली है या नहीं।
आरटीआई एक्ट कुछ खास मामलों में जानकारी न देने की छूट भी देता है। इसके लिए एक्ट की धारा 8 देख लें ताकि आपको पता चल सके कि सूचना देने से बेवजह मना तो नहीं किया जा रहा है।
हर सरकारी विभाग में एक या एक से अधिक लोक सूचना अधिकारी बनाए गए हैं। यह वह अधिकारी हैं जो सूचना के अधिकार के तहत आवेदन स्वीकार करते हैं, मांगी गई सूचनाएं एकत्र करते हैं और उसे आवेदनकर्ता को उपलब्ध् कराते हैं। (धारा-5(१) लोक सूचना अधिकारी की ज़िम्मेदारी है कि वह 30 दिन के अन्दर (कुछ मामलों में 45 दिन तक) सूचना उपलब्ध् कराए। (धारा-7(1)।
अगर लोक सूचना अधिकारी आवेदन लेने से मना करता है, तय समय सीमा में सूचना नहीं उपलब्ध् कराता है अथवा गलत या भ्रामक जानकारी देता है तो देरी के लिए 250 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से 25000 तक का ज़ुर्माना उसके वेतन में से काटा जा सकता है। साथ ही उसे सूचना भी देनी होगी।
लोक सूचना अधिकारी को अधिकार नहीं है कि वह आपसे सूचना मांगने का करण पूछे (धारा 6(2)
सूचना मांगने के लिए आवेदन फीस देनी होगी (केन्द्र सरकार ने आवेदन के साथ 10 रुपए की फीस तय की है,लेकिन कुछ राज्यों में यह अधिक है, बीपीएल कार्डधरकों से सूचना मांगने की कोई फीस नहीं ली जाती (धारा 7(5)।
दस्तावेजों की प्रति लेने के लिए भी फीस देनी होगी. (केन्द्र सरकार ने यह फीस 2 रुपए प्रति पृष्ठ रखी है, लेकिनकुछ राज्यों में यह अधिक है, अगर सूचना तय समय सीमा में नहीं उपलब्ध् कराई गई है तो सूचना मुफ्रत दी जायेगी। (धारा 7(6)
यदि कोई लोक सूचना अधिकारी यह समझता है कि मांगी गई सूचना उसके विभाग से सम्बंधित नहीं है तो यहउसका कर्तव्य है कि उस आवेदन को पांच दिन के अन्दर सम्बंधित विभाग को भेजे और आवेदक को भी सूचित करे। ऐसी स्थिति में सूचना मिलने की समय सीमा 30 की जगह 35 दिन होगी। (धारा 6(3)
लोक सूचना अधिकारी यदि आवेदन लेने से इंकार करता है। अथवा परेशान करता है। तो उसकी शिकायत सीधे सूचना आयोग से की जा सकती है।
सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई सूचनाओं को अस्वीकार करने, अपूर्ण, भ्रम में डालने वाली या गलत सूचना देने अथवा सूचना के लिए अधिक फीस मांगने के खिलाफ केन्द्रीय या राज्य सूचना आयोग के पास शिकायत कर सकते है।
लोक सूचना अधिकारी कुछ मामलों में सूचना देने से मना कर सकता है। जिन मामलों से सम्बंधित सूचना नहीं दी जा सकती उनका विवरण सूचना के अधिकार कानून की धारा 8 में दिया गया है, लेकिन यदि मांगी गई सूचना जनहित में है तो धारा 8 में मना की गई सूचना भी दी जा सकती है।
जो सूचना संसद या विधानसभा को देने से मना नहीं किया जा सकता उसे किसी आम आदमी को भी देने से मना नहीं किया जा सकता।
यदि लोक सूचना अधिकारी निर्धारित समय-सीमा के भीतर सूचना नहीं देते है या धारा 8 का गलत इस्तेमाल करते हुए सूचना देने से मना करता है, या दी गई सूचना से सन्तुष्ट नहीं होने की स्थिति में 30 दिनों के भीतर सम्बंधित लोक सूचना अधिकारी के वरिष्ठ अधिकारी यानि प्रथम अपील अधिकारी के समक्ष प्रथम अपील की जा सकती है (धारा 19(1)।
यदि आप प्रथम अपील से भी सन्तुष्ट नहीं हैं तो दूसरी अपील 60 दिनों के भीतर केन्द्रीय या राज्य सूचना आयोग (जिससे सम्बंधित हो) के पास करनी होती है। (धारा 19(3)।
अगर संबंधित विभाग आपकी अर्जी स्वीकार नहीं करता है तो आप इसे डाक द्वारा भेज सकते हैं। आप इसकी औपचारिक शिकायत सम्बंधित सूचना आयोग को भी अनुच्छेद 18 के तहत करें. सूचना आयुक्त को उस अधिकारी पर 25000रु. का दंड लगाने का अधिकार है जिसने आपकी अर्ज़ी स्वीकार करने से मना किया था। सूचना पाने के लिए केंद्र सरकार के विभागों के लिए, कोई प्रारूप नहीं है। आपको एक सादा कागज़ पर एक सामान्य अर्ज़ी की तरह ही अर्ज़ी देनी चाहिए. हालांकि कुछ राज्यों और कुछ मंत्रालयों व विभागों ने प्रारूप निर्धारित किये हैं। आपको इन प्रारूपों पर ही अर्ज़ी देनी चाहिए. कृपया जानने के लिए सम्बंधित राज्य के नियम पढें.
एक साधारण कागज़ पर अपनी अर्ज़ी बनाएं और इसे पीआईओ के पास स्वयं या डाक द्वारा जमा करें. (अपनी अर्ज़ी की एक प्रति अपने पास निजी सन्दर्भ के लिए अवश्य रखें)
आप अपनी अर्ज़ी की फीस ऐसे दे सकते हैं: स्वयं नकद भुगतान द्वारा (अपनी रसीद लेना न भूलें)
डाक द्वारा:
डिमांड ड्राफ्ट से
भारतीय पोस्टल आर्डर से
मनी आर्डर से [केवल कुछ राज्यों में]
कोर्ट फीस टिकट से [केवल कुछ राज्यों में]
बैंकर चैक सेआपको सूचना पाने का कोई कारण या अन्य सूचना केवल अपने संपर्क विवरण (जो हैं नाम, पता, फोन न.) के अतिरिक्त देने की आवश्यकता नहीं है। अनुच्छेद 6(2) स्पष्टतः कहता है कि प्रार्थी से संपर्क विवरण के अतिरिक्त कुछ नहीं पूछा जायेगा.
पीआईओ आपकी आरटीआई अर्जी लेने से किसी भी परिस्थिति में मना नहीं कर सकता. चाहें वह सूचना उसके विभाग/ कार्यक्षेत्र में न आती हो, उसे वह स्वीकार करनी होगी. यदि अर्जी उस पीआईओ से सम्बंधित न हो, उसे वह उपयुक्त पीआईओ के पास 5 दिनों के भीतर अनुच्छेद 6(2) के तहत भेजनी होगी.
पीआईओ पर लगे जुर्माने की राशि सरकारी खजाने में जमा हो जाती है। हांलांकि अनुच्छेद 19 के तहत, प्रार्थी मुआवजा मांग सकता है।
अप्लीकेशन का फॉर्मेट
दिनांक:
रजिस्टर्ड पोस्ट द्वारा
सेवा में,
जन सूचना अधिकारी,
विभाग / कार्यालय
स्थान
1- अभ्यर्थी का नाम:
2- पूरा पता एवं दूरभाष नं:
3- वांछित सूचना का उल्लेख:
4- अदा किये गये शुल्क का उल्लेख:
क) दस रुपये का शुल्क का भुगतान _______ रसीद द्वारा _______ के कार्यालय में किया गया। (प्रति संलग्न), अथवा
ख) दस रुपये का शुल्क का भुगतान _________ के द्वारा जारी किया गये, ड्राफ़्ट / पे ऑर्डर / पोस्टल ऑर्डर, संख्या ________, दिनांक _____, ______ के प्रति किया गया, अथवा
ग) मैं गरीबी रेखा से नीचे परिवार का सदस्य हूँ, (बी पी एल प्रमाण पत्र की प्रति संलग्न)।
5- यदि कोई स्व:प्रमाणित संलग्न दस्तावेज़ है तो उसका उल्लेख।
6- मैं एक भारतीय नागरिक हूँ। कृपया माँगी गयी जानकारी अतिशीघ्र उपलब्ध कराएं।


अभ्यर्थी के हस्ताक्षर

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