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हिंदी साध ली तो समझो सत्ता भी सधी

 सच! इस बार जैसा हिंदी दिवस आया, वैसा कभी न आया। इस बार जितने ‘वीआईपीज’ ने हिंदी दिवस की महिमा मुक्त कंठ से गाई, वैसी न कभी देखी और न सुनी थी। जरा देखिए अपने ‘पीएम’ तो हिंदी दिवस की बधाई दे ही रहे हैं, अपने राहुल भैया भी हिंदी दिवस की बधाई दे रहे हैं। जो कभी ‘एक पेज’ पर नहीं दिखे, उनको भी हिंदी दिवस ने ‘एक पेज’ पर खड़ा कर दिया! इतना ही नहीं, रक्षा मंत्री भी बधाइयां दे रहे हैं, सड़क परिवहन मंत्री भी बधाई दे रहे हैं और दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री भी बधाई दे रहे हैं। हिंदी के दिन बहुर रहे हैं।

यूं तो हरेक बरस हिंदी दिवस आता था, ‘वीआईपीज’ बधाइयां देते थे और भूल जाते थे। सरकारी दफ्तरों में पखवाड़े भर पिकनिक सी मन जाती थी। हिंदी वाले हिंदी की दशा-दुर्दशा पर थोड़ा रो-धो लेते थे, साथ ही राजभाषा पर थोड़ा ‘गर्व-खर्व’ कर लेते थे, समोसे, मिठाई और माले-दुशाले हो जाते थे। हिंदी में दफ्तरी कामकाज की रिपोर्टें दी-ली जाती थीं। लेकिन इस बार का हिंदी दिवस कुछ अद्भुत नजारे दिखा रहा है। जो कभी एक सुर में नहीं बोलते थे, इस बार हिंदी दिवस ने उनको भी एक सुर में बोलने को विवश कर दिया है। यह है हिंदी का जादू, जो आज सबके सिर चढ़कर बोल रहा है।

इस बार सभी शुभकामनाएं दे रहे हैं। सब हिंदी को जोड़ने वाली भाषा कह रहे हैं, और दुनिया में भारत की शान बढ़ाने वाली भाषा मान रहे हैं। हिंदी के भाग जग रहे हैं। सब हिंदी की जय-जयकार कर रहे हैं। हिंदी से जलने वाले जला करें, कुढ़ने वाले कुढ़ा करें, निंदा करने वाले निंदा करते रहें, खतरा मानने वाले खतरा मानते रहें, लेकिन आज हिंदी के बिना किसी की दुकान नहीं चलती। यहां तक ट्रंप साहब की अमेरिकी राजनीति की दुकान भी बिना हिंदी के नहीं चलती दिखती। इसीलिए तो वह कुछ दिनों पहले हिंदी में बोले हैं कि ‘भारत-अमेरिका सबसे अच्छे दोस्त’!

साफ है, अब हिंदी सिर्फ ‘भाषा’ नहीं है, वह 60-70 करोड़ ‘जनता’ है। वह 60-70 करोड़ ‘वोट की भाषा’ है और इस तरह वह सबसे ताकतवर भाषा है। वही सत्ता की भाषा है। हिंदी अब एक सरकार है। हिंदी हम सबकी दरकार है। हिंदी ही सबसे बड़ा बाजार है। हिंदी में विचार है, हिंदी में प्रचार है, हिंदी का कारोबार है। हिंदी में नोट हैं, हिंदी में भरपूर वोट हैं। जब विधानसभा के पिछले चुनाव आए, तो तमिलनाडु के घोर हिंदी विरोधियों तक ने वहां रहने वाली हिंदीभाषी मतदाताओं का वोट लेने के लिए बाकायदा हिंदी में परचे निकाले।

कभी हिंदी को सिर्फ ‘गउ-पट्टी’ की भाषा मानकर उसकी हंसी उड़ाई जाती थी, फिर वह राजभाषा बनी और हिंदी दिवस का उत्सव मनाने लगी, फिर वह मीडिया की बड़ी भाषा बनी, फिर वह ‘मार्केट’ की भाषा बनी और आज वह ‘पावर’ की भाषा है, सत्ता की भाषा है, राजनीति की भाषा है, दुनिया की तीसरे नंबर की भाषा है।

जरा देखिए तो, जैसे ही हिंदी पावर की भाषा बनी, राजनीति की भाषा बनी और सत्ता बनाने-बिगाड़ने वाली भाषा बनी, वैसे ही उसके दिन फिरने लगे। उसकी ताकत को सबने पहचानना शुरू कर दिया। सब जानते हैं कि जिसके पास हिंदी है, उसके पास पावर है। हिंदी नहीं, तो पावर नहीं। यही हिंदी की ताकत है।

हिंदी ही पावर देती है और हिंदी ही पावर चलाती है और हिंदी ही ‘पावर सेंटर’ है, जो हिंदी में नहीं, वह केंद्र में नहीं। याद कीजिए, देवेगौड़ा जी तक को हिंदी बोलनी पड़ी थी। तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता हिंदी फिल्मों के गीत गाती दिखती थीं। यह सब अपने जनतंत्र की मेहरबानी है, अपनी राजनीति की मेहरबानी है, वोट की मेहरबानी है, और हिंदी की सत्ता की ताकत की मेहरबानी है।

चौबीस के चुनाव आ रहे हैं, इसलिए सब समझ चुके हैं कि हिंदी साधी, तो सत्ता साधी!

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